डीपफेक वीडियो का खतरनाक सच और इससे बचने के उपाय
virat kohli deepfake video goes viral- आज के डिजिटल युग में, सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे डीपफेक वीडियो गंभीर चिंता का विषय बन गए हैं। हाल ही में, इंस्टाग्राम सेलिब्रिटी जारा पटेल का एक असली वीडियो और रश्मिका मंदाना का डीपफेक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें रश्मिका का चेहरा जारा के शरीर पर लगाया गया था। इस वीडियो को हजारों लोगों ने असली मान लिया, क्योंकि वीडियो में दिख रहे एक्सप्रेशन बिल्कुल असली लग रहे थे। यहां तक कि अमिताभ बच्चन और खुद रश्मिका मंदाना ने भी इस पर हैरानी जताई।
रश्मिका ने अपने ट्विटर पोस्ट में लिखा, “ईमानदारी से कहूं तो ऐसा कुछ न केवल मेरे लिए, बल्कि हममें से हर एक के लिए बेहद डरावना है। अगर मेरे साथ ये तब हुआ होता, जब मैं स्कूल या कॉलेज में थी, तो मैं इससे निपटने का सोच भी नहीं सकती थी।”
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इसी तरह, भारत के स्टार बल्लेबाज विराट कोहली का भी एक डीपफेक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें उनके पुराने इंटरव्यू को एडिट करके उन्हें शुभमन गिल की बुराई करते हुए दिखाया गया था। इस वीडियो में कोहली खुद को और सचिन तेंदुलकर को लीजेंड बताते हुए नजर आते हैं।virat kohli deepfake video goes viral
क्या है डीपफेक और कैसे बनता है
डीपफेक एक ऐसी तकनीक है जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और मशीन लर्निंग का उपयोग करके किसी व्यक्ति के चेहरे, आवाज, और एक्सप्रेशन को दूसरे वीडियो में फिट कर दिया जाता है। इस प्रक्रिया में सबसे पहले उस व्यक्ति की फोटो या वीडियो की पहचान की जाती है, जिसमें नकली चेहरा और आवाज फिट की जा सके। फिर फेस स्वैप तकनीक से चेहरा बदला जाता है और ऑडियो जोड़कर इसे असली जैसा दिखाया जाता है।
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डीपफेक तकनीक का उपयोग ज्यादातर पोर्नोग्राफी, घोटालों, धोखाधड़ी, सेलिब्रिटी को बदनाम करने, चुनावों में हेराफेरी, और वित्तीय फ्रॉड जैसे कामों के लिए किया जाता है। यह तकनीक इतनी उन्नत हो चुकी है कि असली और नकली वीडियो में अंतर करना मुश्किल हो गया है।
डीपफेक से निपटने के लिए भारत में कानून ही नहीं
यूरोपीय यूनियन ने डीपफेक को रोकने के लिए AI एक्ट के तहत “कोड ऑफ प्रैक्टिस ऑन डिसइन्फॉर्मेशन” लागू किया है, जिसमें गूगल, मेटा, और ट्विटर जैसी कंपनियों को सख्त कदम उठाने पड़ते हैं। अमेरिका में भी डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट लागू किया गया है।
भारत में, फिलहाल डीपफेक से निपटने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। ऐसे मामले आमतौर पर IT एक्ट के तहत ही सुने जाते हैं। साइबर मामलों के जानकार अनुज कुमार अग्रवाल बताते हैं कि भारत में इस संबंध में कोई अलग कानून नहीं है, लेकिन IT एक्ट के तहत ऐसे मामलों में तीन से दस साल की सजा हो सकती है।
डीपफेक वीडियो से बचाव के उपाय
टेक्नोलॉजी का उपयोग: डीपफेक का पता लगाने के लिए AI और मशीन लर्निंग टूल्स का विकास किया जा रहा है, जो वीडियो की अनियमितताओं को पकड़ सकते हैं।
शिक्षा और जागरूकता: आम जनता को डीपफेक के खतरे और इसके प्रभाव के बारे में शिक्षित करना बेहद जरूरी है। सोशल मीडिया पर दिखाए जाने वाले हर वीडियो पर विश्वास करने से पहले उसकी सत्यता की जांच करनी चाहिए।
कानूनी उपाय: सरकारों को डीपफेक वीडियो के निर्माण और प्रसार पर सख्त कानूनी कदम उठाने चाहिए, जिससे कड़ी सजा और जुर्माने का प्रावधान हो।
सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स की जिम्मेदारी: सोशल मीडिया कंपनियों को साझा किए जाने वाले वीडियो की जांच के लिए प्रभावी नीतियां अपनानी चाहिए और डीपफेक सामग्री को तुरंत हटाना चाहिए।
वीडियो सत्यापन: किसी भी वीडियो की सत्यता पर संदेह होने पर विश्वसनीय स्रोतों से जांच करना जरूरी है। कई ऑनलाइन टूल्स और सेवाएं हैं जो वीडियो की प्रामाणिकता की जांच कर सकती हैं।