प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है जीवन देना या मूर्ति में प्राण डालना। वेदों और पुराणों में स्थापित अनुष्ठानों से उस भगवान् के प्राण उस प्रतिमा में डालना 

जिस भगवान की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होनी होती है उसे गंगा जल से स्नान करवाया जाता है। मंत्रोचार के साथ मंदिर के पंडित उस मूर्ति का विधिवत श्रृंगार करवाते है।  

प्राण प्रतिष्ठा के पहले दिन मूर्ति का नगर में विधिवत यात्रा करवाई जाती है। भगवान को भोग लगाया जाता है। 

प्राण प्रतिष्ठा के बिना मूर्ति की पूजा नहीं होती है। यह भगवान के साकार स्वरूप की पूजा पाठ का श्रेष्ठ तरीका है। मूर्ति में प्राण आ जाते हैं। वह पूज्यनीय हो जाती है।

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