Child Health Care Tips in Hindi – सेहत के ख़जाने की चाबी
Parenting Tip – आज के समय में Parents की एक सबसे बड़ी समस्या है, छोटे बच्चों की सेहत का ख्याल कैसे रखा जाए? फ़ोन और टेलीवीजन का अत्यधिक प्रचलन, दो साल की उम्र में प्री-स्कूल भेजने का दबाव, अधिकतर प्री-स्कूल बेसमेंट या एक बंद स्थान में जहाँ सूर्य की रौशनी भी ठीक से नहीं पहुँच पाती आदि कई कारणों से बच्चो की रोग प्रतिरोधक क्षमता निचले स्तर की होती है।
कैसे करें ऐसे समय में बच्चो की सेहत को तंदुरस्त ?
1. रोज़ सवेरे कम से कम दस मिनट सूर्य की रौशनी में रखें-
Child Health Care Tips in Hindi -सूर्य की सुबह की रौशनी विटामिन डी के लिए आवश्यक होती है, ऐसा सभी जानते हैं, लेकिन यह रौशनी बच्चे के जीवन में सकारात्मकता भी पैदा करती है. यह रौशनी मानसिक तौर पर और शारीरिक तौर पर, दोनों ही तरीके से मज़बूत बनाती है।
2. रोज़ शाम को कम से दो घंटे बाहर रखें (Child Health Care Tips in Hindi )
रोज़ समय निकालकर बच्चे को बहार की आबो-हवा में कम से कम दो घंटे रखें. और ऐसी गतिविधि करवाएं जिसमें श्वांस फूलता हो, मसलन भागना-दौड़ना, रस्सी कूदना, क्रिकेट या बैडमिंटन खेलना, स्विमिंग करना, या साइकिलिंग करना। बच्चे को यह सब करते हुए आनंद आये, उसके लिए ज़रूरी है कि उसकी रुचि बढाई जाए. अभिभावक स्वयं जिम जातें हैं लेकिन कई बार बच्चों के साथ जब वे कोई गतिविधि करते हैं।
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तब स्वयं को ज़्यादा थका हुआ महसूस करते हैं, कारण यही है कि बढ़ते हुए शरीर की उर्जा अधिक होती है और उस उर्जा को संतुलित करना उसके विकास के लिए बैहद आवश्यक है. दो घंटे का समय ऐसा रखें, जिसमें से एक घंटा बिना किसी हस्तक्षेप के खेलने दें, इससे एक पंथ दो काज होंगे, वे शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से मजबूत होंगें।
3 . शारीरिक इच्छा पर ध्यान दें
जिस तरह एक ही अवस्था में बैठे रहने से बड़े उम्र के लोगों के कोई एक अंग सो जाता है , उसमें झुनझुनाहट महसूस होती है. ठीक उसी तरह हर शरीर की अपनी एक प्रकृति होती है, जिससे वह बताना चाहता है कि इस समय उसे मूवमेंट की ज़रूरत है। बच्चों का शरीर चूँकि प्राकृतिक तौर पर ज़्यादा सन्देश देता है, और ज़्यादा मूवमेंट के संकेत देता है. बतौर अभिभावक या अध्यापक हमें वो सन्देश या संकेत पढने आने चाहिए।
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उन संकेतों को उद्दंडता या शरारत का नाम न देकर, उसे नियमित करें. उदहारण के तौर पर आपने देखा कि कक्षा में कोई छात्र बार बार कहने पर भी बैठ नहीं रहा है, क्यूंकि उसका शरीर हलचल के संकेत दे रहा है। ऐसे में बतौर अध्यापक आपको उसे डांटने या डराने की बजाय कुछ ऐसा टास्क या एक्टिविटी दें कि कुछ ही देर में उसकी शारिरिक उर्जा संयमित हो सके।
फिर आप उसे समझा सकते हैं कि कैसे वो अपने शरीर के सिग्नल्स को समझें और उनके अनुररूप व्यवहार करें।
4 . भोजन से बच्चे का रिश्ता (Kids And Food)
बच्चे का रिश्ता भोजन से तभी शुरू होता है, जब बच्चा इस दुनिया में आता है। आप किस तरीके से भोजन करते हैं, उसकी खुशबू से उसकी सभी इंद्री भोजन की तरफ आकर्षित होती हैं। अन्नप्रासन संस्कार के बाद अभिभावक को उसका रिश्ता भोजन से मजबूत करना चाहिए।
बच्चा गंदा नहीं हो या ज्यादा खा ले के लालच में अमूमन देखा गया है कि उसे खाना छूने नहीं दिया जाता या फोन टीवी जैसी गतिविधियों में लगा कर खिलाया जाता है, जो बाद में बेहद ही खराब निर्णय साबित होता है, कारण यह है कि खाने का रिश्ता नहीं बन पाता।
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खाना केवल पेट भरने के लिए नहीं होता, भोजन का संबंध हमारी सेंसेज से, हमारे अवचेतन मन से, शरीर में बनने वाली ऊर्जा से होता है। इसलिए बड़े बुजुर्ग कहते सुने गए हैं कि डांट कर खाना खिलाने से गुण नहीं करेगा।
भोजन का गुण, भोजन के साथ रिश्ता स्थापित करने से आता है। और वह रिश्ता स्थापित करने के लिए कच्चे भोजन की सामग्री से खेलने देना, भोजन को खुद खाने देना, भोजन के लिए कच्ची सामग्री एकत्रित करने के लिए साथ बाज़ार लेकर जाना, भोजन करने के बाद खुशी या स्वाद कैसा आया आदि बात करना, जैसे काम अभिभावक को करने चाहिए।
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Parents का कर्तव्य खाना खिलाना ही नहीं, जीवनपर्यंत बच्चे का भोजन के साथ संबंध स्थापित करना होता है।
भविष्य के नौनिहालों की सेहत को लेकर सचेत होना बेहद ज़रूरी है. उनकी सेहत और रोग प्रतिरोधक् क्षमता को तंदुरस्त करना उतना ही आवश्यक है जितना उन्हें स्कूल भेजना और पढाना-लिखाना